गुरुवार, 6 अक्टूबर 2016

Bhander

   भांडेर -             


             ग्वालियर से  प्राप्त ११०४ ई. के एक लेख के अनुसार ग्वालियर के राजा भाण्डेर पाल ने एक किला तथा एक झील का निर्माण कराया था। उसी के नाम पर भाण्डेर का नाम पड़ा। यह आगरा को  वाया ग्वालियर, इलाहबाद, पटना होकर  बंगाल   से जोड़ने वाले प्राचीन राजमार्ग पर स्थित होने के कारण सैनिक दृष्टी से महत्वपूर्ण नगर था। अकबर के शासन काल में यह आगरा सूबा के एरच सरकार का एक परगना था, जिसका क्षेत्रफल २५७,०४२ बीघा १८ बिस्वा था। सुरक्षा  के लिए ५० घुड़सवार, २००० सैनिक तथा ५ हाथी हसन खान पठान के नेतृत्व में तैनात थे। (अकबरनामा-अबुल फजल) अबुल फजल को मरने के बाद राय रयान के नेतृत्व में जब मुग़ल फौजें बीर सिंह देव बुंदेला का पीछा का रहीं थीं तब बीर सिंह देव भांडेर के किले में छुप गए थे और  जब मुग़ल फौजों ने भाण्डेर के किले को घेर लिया तो वह वहां से भाग कर एरच चले गए । ( takmil-i-Akabarnama by Inayat Ullah continuing Abul Fazal`s work from 1602-1605) १६३५ ई. में शाहजहां ने कटरा  का नाम इस्लामाबाद रखकर इसे सरकार का दर्जा दिया तब भांडेर का महत्त्व कम हो गया था। बुंदेलों को इस्लामाबाद स्वीकार नहीं था, इसीलिए वे इस्लामाबाद की जगह भांडेर  का प्रयोग करते थे। बाबा महादेव गिरी की सेना ने अदोनी की विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पुरुष्कार में दलपत राव ने उन्हें १६८८ ई. में दतिया से १ कि.मी. दूर डगरई गांव दिया था, लेकिन सनद में उन्होंने इस्लामाबाद की जगह परगना भांडेर लिखा।(बुंदेला शासकों की प्रशासनिक व्यवस्था- संजय स्वर्णकार पृ ३१०) १७०७ में औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद मुगलिया सल्तनत का पतन होना शुरू हो गया था, इसका फायदा उठा कर गोहद के जाटों ने ग्वालियर पर अधिकार करने के साथ-साथ भाण्डेर पर भी अधिकार कर लिया था। १७८३ में ग्वालियर पर मराठों का अधिकार हो जाने के बाद भांडेर पर जाटों का अधिकार बना रहा। १८०४ में जाट राजा कीरतसिंह के  गोहद से धौलपुर स्थांतरित होने के पूर्व १८०४ में  अम्बा जी इंगले की सलाह पर भांडेर  मौजे के  पिपरौआ गांव में १०१ बीघा जमीन की सनद की।  (बुंदेलों की प्रशासनि व्यवस्था- पृ. ३०६ ) पिपरौआ गांव वर्तमान इंदरगढ़ के करीब है, इससे भी प्रमाणित होता है कि इंदरगढ़ का पूर्व नाम भांडेर था। मध्य प्रदेश टूरिस्ट रोड एटलस- इंडियन मैप सर्विस, जोधपुर पृ २५ पर दतिया के नक़्शे में भाण्डेर इंदरगढ़ के पास है। १८०१ ई. में राजा परीक्षत ने सिंधिया और अन्य मराठों से अपना खोया हुआ राज्य प्राप्त करने का प्रयास किया। किन्तु राजा परीक्षत को डर था कि सिंधिया का सरदार अम्बाजी इंगले उन्हें परेशान  न करे इसीलिए १५ मार्च १८०४ को अपने राज्य की सुरक्षा के लिए अंग्रेजों से संधि की। इस संधि में पहली बार भांडेर की जगह इंदरगढ़ का उल्लेख हुआ। (दतिया गज़ेटियर पृ.४४) तब से भांडेर की जगह इंदरगढ़ प्रचलन में आ गया। वर्तमान भांडेर जो दतिया जिले की एक तहसील है, का पूर्व नाम भद्रावती था जो बिगड़ते-बिगड़ते भड़ोल, भड़ोर और अंत में भांडेर में परिवर्तित हो गया।  

1 टिप्पणी:

  1. Sahi bat likhi h , Datia naresh maharaja parikshat n maratho s Bhander bapas le liya tha or rajya ka kch or hissa bhi jo maratho n cheen liya tha Bundelo s

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