उलेमाओं द्वारा भाई-चारे का क़त्ल .-सोम त्रिपाठी
लोधी सल्तनत में न्याय के श्रोत भ्रष्ट थे। राजस्व की बसूली बड़ी क्रूरता से की जाती थी। अंग-भंग करना और गुलाम बना कर बाजार में बेच देना आम बात थी, परन्तु फिर भी तुलनात्मक दृष्टि से लोधी सुल्तान अन्य पूर्ववर्ती मुसलमान सुल्तानों की अपेक्षा थोड़े उदार थे, इसीलिए उनके सुदूर इलाकों में हिन्दू और मुसलमानों के बीच भाई-चारा पल्लवित हो गया था। वे एक दूसरे के त्यौहारों और दुःख दर्द में शामिल होने लगे थे। परन्तु यह भाई-चारा दूर-दराज के उन इलाकों में ही पल्ल्वित हुआ था जहाँ हिन्दू बहुसंख्यक तथा मुसलमान अल्पसंख्यक थे। हम इसे जुल्म और अपमान के साथ समझौता करने की मजबूरी भी कह सकते हैं,पर जो भी हो इस भाई-चारे का विस्तार होना चाहिए था, जो कठमुल्लों और कट्टर पंथियों के कारण नहीं हो पाया।
एक बार कनेर कस्बे में हिन्दू और मुसलमान एक दूसरे के धर्म की अच्छाइयों के बारे में चर्चा कर रहे थे, उसी समय लौधान नामक एक ब्राह्मण आया और उसने कहा कि इस्लाम उतना ही महान धर्म है जितना कि हमारा। वहां बैठे हुए सारे लोगों ने लौधान की बात का समर्थन किया और उसकी प्रसंशा की। लौधान की बात की प्रसंशा चारों और होने लगी। लखनौती के उलेमा क़ाज़ी प्यारा और शेख बद्र के कानों में जब यह बात पहुंची तो वो भी प्रसन्न हुए और उन्होंने इसके समर्थन में एक फतवा जारी कर दिया।
उस समय सम्भल लोधी सल्तनत का एक सूबा हुआ करता था, जिसका सूबेदार आज़म हुमायुं था। जब उसे उक्त फतवे की जानकारी हुई तो वह तिलमिला उठा। उसे यह कतई स्वीकार नहीं था कि कोई उसके मजहब की तुलना अन्य मजहब से करे। उसने सिपाहियों को भेज कर लौधान, क़ाज़ी प्यारा तथा शेख बद्र को पकड़वा कर बुलवा लिया और इन सब को सुल्तान सिकंदर लोधी के सामने पेश किया जो उस समय सम्भल में ही मुकाम किये हुए था। सिकंदर लोधी को भी यह स्वीकार नहीं था कि कोई उलेमा इस तरह का फतवा जारी करे अत: उसने इस तरह के विवादों को हमेशा-हमेशा को समाप्त करने के लिए सारे सूबों से इस्लाम के उलेमाओं को बुलवाया। मुल्ला अब्दुल्ला बल्द मुल्ला इलाहदाद, सैयद मुहम्मद, और मियां कदन देहली से आये। इसके आलावा आसपास के समस्त मुल्लाओं और उलेमाओं को भी संभल में बुलाया।सारे विद्वानों ने गहराई से प्रकरण की छानबीन कर फतवे को निरस्त करते हुए यह निर्णय दिया कि ब्राह्मण लौधान को मुसलमान बना कर कैदखाने में डाल दिया जाये अथवा क़त्ल कर दिया जावे। लौधान ने मुसलमान होना स्वीकार नहीं किया। परिणामस्वरूप उसका क़त्ल कर दिया गया था। तब से यह एक कानून बन गया और उसका पालन शक्ति के साथ पूरे मुसलिम काल में हुआ और बाद में इसने आतंकवाद का रूप धारण कर लिया
उपरोक्त घटना १५०५ की है, क्योंकि जब इस घटना के बाद सिकंदर लोधी ३ सफर ९११ हिज़री (५ जुलाई १५०५) को आगरा पहुंचा उसी समय वहां भयंकर भूकम्प आया था, जिसमें बड़ी-बड़ी इमारतें गिर गई थीं और पूरा आगरा बरबाद हो गया था। लोगों का विश्वास था कि इतना भयंकर भूकम्प आदम के बाद पहली बार आया है शायद क़यामत का दिन आ गया है।*
*The History of India, as Told by Its Own Historians. The Muhammadan Period. -Sir H.M.Elliot.Vol. 4 Chep- XXXIII (33) Tarekh-I-Daudi of Abdulla.
उस समय सम्भल लोधी सल्तनत का एक सूबा हुआ करता था, जिसका सूबेदार आज़म हुमायुं था। जब उसे उक्त फतवे की जानकारी हुई तो वह तिलमिला उठा। उसे यह कतई स्वीकार नहीं था कि कोई उसके मजहब की तुलना अन्य मजहब से करे। उसने सिपाहियों को भेज कर लौधान, क़ाज़ी प्यारा तथा शेख बद्र को पकड़वा कर बुलवा लिया और इन सब को सुल्तान सिकंदर लोधी के सामने पेश किया जो उस समय सम्भल में ही मुकाम किये हुए था। सिकंदर लोधी को भी यह स्वीकार नहीं था कि कोई उलेमा इस तरह का फतवा जारी करे अत: उसने इस तरह के विवादों को हमेशा-हमेशा को समाप्त करने के लिए सारे सूबों से इस्लाम के उलेमाओं को बुलवाया। मुल्ला अब्दुल्ला बल्द मुल्ला इलाहदाद, सैयद मुहम्मद, और मियां कदन देहली से आये। इसके आलावा आसपास के समस्त मुल्लाओं और उलेमाओं को भी संभल में बुलाया।सारे विद्वानों ने गहराई से प्रकरण की छानबीन कर फतवे को निरस्त करते हुए यह निर्णय दिया कि ब्राह्मण लौधान को मुसलमान बना कर कैदखाने में डाल दिया जाये अथवा क़त्ल कर दिया जावे। लौधान ने मुसलमान होना स्वीकार नहीं किया। परिणामस्वरूप उसका क़त्ल कर दिया गया था। तब से यह एक कानून बन गया और उसका पालन शक्ति के साथ पूरे मुसलिम काल में हुआ और बाद में इसने आतंकवाद का रूप धारण कर लिया
उपरोक्त घटना १५०५ की है, क्योंकि जब इस घटना के बाद सिकंदर लोधी ३ सफर ९११ हिज़री (५ जुलाई १५०५) को आगरा पहुंचा उसी समय वहां भयंकर भूकम्प आया था, जिसमें बड़ी-बड़ी इमारतें गिर गई थीं और पूरा आगरा बरबाद हो गया था। लोगों का विश्वास था कि इतना भयंकर भूकम्प आदम के बाद पहली बार आया है शायद क़यामत का दिन आ गया है।*
*The History of India, as Told by Its Own Historians. The Muhammadan Period. -Sir H.M.Elliot.Vol. 4 Chep- XXXIII (33) Tarekh-I-Daudi of Abdulla.