झाँसी का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम १८५७
-सोम त्रिपाठी
सन १८५७ में झाँसी दो भागों में बंटा हुआ था- १. शहर के परकोटे के अंदर की बस्ती और क़िला, २. नवाबाद, जिसमें चारदीवारी से घिरा सिविल लाइन और कॅन्टोमेंट का एरिया शामिल था। आज नवाबाद की स्मृति को संजोये हुए केवल नवाबाद थाना ही शेष रह गया है। यहां एक क़िला भी है, जिसे जानकारी न होने के कारण हिडन फोर्ट कहते हैं। स्टार की आकृति में बना होने के कारण इस क़िले का नाम स्टार फोर्ट है तथा इसका क्षेत्रफल १.५ एकड़ है। वर्तमान में स्टार फोर्ट कॅन्टोमेंट की सीमा में है, जहां आम आदमी का प्रवेश वर्जित है। इसे प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की १५०वी जयन्ती के अवसर पर पहली बार जनता के दर्शनार्थ खोला गया था। झाँसी का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम इसी स्टार फोर्ट में लड़ा गया था, जिसमें अंग्रेजों की करारी हार हुई थी और झाँसी स्वतंत्र हो गया था।
फोर्ट का यह दुर्लभ चित्र एक ब्रिटिश फोटोग्राफर द्वारा १८९० में खींचा गया था (अक्षय चौहान के ब्लॉग से )
सन १८५७ में झाँसी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज्य था। मेजर एलेक्जेंडर स्केन अधीक्षक, कॅप्टन गोर्डन उप अधीक्षक, डनलप सेना का कमांडर था। इसके अलावा कस्टम, साल्ट आदि विभागों के अलग अलग अंग्रेज अफसर थे। वे झाँसी के निवासियों के साथ जानवरों की तरह व्यवहार करते थे। उनके अत्याचारों से जनता त्रस्त थी।
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को अंग्रेजो की गुलामी कतई स्वीकार नहीं थी, किन्तु वे विवश थीं। उनके पास सेना के नामपर मात्र १०० रक्षक थे, जिनके सहारे अंग्रेजों को झाँसी से बाहर नहीं निकाला जा सकता था। उन्हें अपने इस उद्देश्य की पूर्ती के लिए उन्हें एक सशक्त सेना की आवश्यकता थी। जिसे अंग्रेजी सेना के भारतीय सिपाही ही पूरा कर सकते थे। रानी ने क़िले में तैनात अंग्रेजों की १८वी इन्फेंट्री की ७वी कंपनी और शहर की पुलिस को अपने पक्ष में मिलाने के लिए अपने विश्वसनीय कर्मचारी लक्ष्मण राव को नियुक्त किया। लक्ष्मण राव ने इन्फैंट्री के हवलदार गुरुबख्श की मदद से इन्फैंट्री तथा पुलिस को अपने पक्ष में कर लिया।
लक्ष्मण राव के बार-बार क़िले में जाने के कारण अंग्रेजों को संदेह हो गया। मेरठ, देहली आदि स्थानों पर घटित विद्रोह की घटनाओं के कारण उन्हें यह डर लगाने लगा कि कहीं झाँसी में उनकी सेना विद्रोह न कर बैठे? इसीलिये उन्होंने सुरक्षा की दृष्टि से अपनी दिनचर्या बदल ली। अब वह दिन अपने बंगलों में तथा रात परिवार सहित स्टार फोर्ट में व्यतीत करते थे, जहां सुरक्षा की पूरी व्यवस्था थी। फोर्ट के बाहर कप्तान बर्गीस ने अपने सैनिकों के साथ पहरा देने के लिए तम्बू लगा लिए थे ।
४ जून १८५७
शाम के ३-४ बजे, झाँसी के क़िले से हबलदार गुरुबख्श के नेतृत्व में १८वी इन्फेंट्री की टुकड़ी मार्च करती हुई स्टार फोर्ट की ओर रवाना हुई। लोगों ने इसे सेना का सामान्य प्रचलन समझा, इसीलिये किसी ने इस पर गौर नहीं किया। लेकिन स्टार फोर्ट पहुँचाने पर उस टुकड़ी ने बर्गीस के सैनिकों पर आक्रमण कर दिया। इस अचानक आक्रमण से घबड़ाकर वह अपने साथियों के साथ स्टार फोर्ट में भाग गया, लेकिन लेफ्टिनेन्ट टर्नबुल भाग नहीं पाया, वह जान बचाने के लिए पास के एक पेड़ पर चढ़ गया। उसे पेड़ पर चढ़ते हुए सेनानियों ने देख लिया और गोली मार दी। एक दूसरा अंग्रेज अफसर घोड़े पर सवार होकर बरुआसागर भाग गया।वहां उसने सर्वेयर साहिब राय को अपना घोड़ा और घड़ी देकर बदले में हिन्दुस्तानी कपड़े मंगवाये और भेष बदलकर पैदल भाग गया। बाद में पीछा करते हुए सेनानी वहां पहुंचे, उन्होंने घोड़ा देखकर साहिब राय से पूँछ-तांछ की। पूँछ तांछ में पता चला कि साहिब राय के साथ वहां के दरोगा ने भी उस अंग्रेज को भगाने में मदद की थी, इसीलिये वे इन दोनों को गिरफ्तार कर झाँसी ले आये और उन्हें मामा साहब (रानी के पिता मोरोपंत ) के सामने पेश किया। बाद में सारे सेनानी रानीमहल पहुंचे, वहां उन्होंने रानी से मार्गदर्शन लेकर अगला कार्यक्रम निर्धारित किया और फिर विश्राम के लिए वापिस क़िले में चले गये ।
५ जून १८५७
स्टार फोर्ट की घटना के कारण सुबह केप्टन डनलप ने शेष १२वी इन्फेंट्री और घुड़सवार सेना की परेड ली और सबसे वफादारी के संबंध में पूंछा, तो सैनिकों ने कहा की वे सब उनके साथ हैं। लेकिन डनलप के जाने के बाद १२ वीं इन्फेंट्री और घुड़सवार सेना के जवान गुरुबख्श के समझाने पर स्वतन्त्रता सेनानियों के साथ हो गऐ । इसके अलावा जेल का दरोगा बख्शीस अली ने जेल के सारे कैदियों को आजाद कर दिया और उनको लेकर वह अपने स्टाफ के सिपाहियों के साथ सेनानियों की कतार में खड़ा हो गया।
दुपहर १ बजे ५०-६० सेनानियों ने मैगजीन और खजाने पर आक्रमण कर उसे अपने कब्जे में ले लिया। अब शक्ति संतुलन पूरी तरह स्वतन्त्रता सेनानियों के पक्ष में हो गया था। उनके साथ अंग्रेजों की अधिकाँश सेना, पुलिस, कस्टम,जेल व जेल के कैदियों के अलावा झाँसी की पूरी जनता और आस-पास के बंदूकधारी शामिल हो गए थे। ऐसी स्थिति में रानी चाहतीं थी कि अंग्रेज बिना किसी खून-खराबे के यहां से चले जाएँ। यह प्रस्ताव उन्होंने मेजर स्केन के पास भिजवाया, परन्तु उसने रानी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर कहा कि रानी उसे डरा रहीं हैं। लेकिन उसने सुरक्षा की दृष्टि से महिलाओं और बच्चों को स्टार फोर्ट में भिजवा दिया।
६ जून १८५७
कल की घटना को देखकर सेना के कमांडर कैपटन डनलप ने नाके-बंदी कर गार्ड तैनात कर दिए। सुबह से स्थति कल की तरह यथावत रही , परन्तु दुपहर के १२ बजे बाद सारे स्वतन्त्रता सेनानी एकत्र हो गए। उस समय डनलप अपने कुछ अंग्रेज अफसरों के साथ पत्र पोस्ट करने के लिए डाकखाने जा रहा था। पत्र पोस्ट करने के बाद वह अपने बंगले की ओर रवाना हुआ कि सेनानियों ने उसपर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में वह और उसका साथी इन्सिग्न टेलर मारा गया और एक दूसरा अफसर कॉम्बेल घायल होकर भाग गया। सेनानियों ने अंग्रेजों के बंगलों तथा आफिसों को जला कर राख कर दिया। इसके बाद उन्होंने स्टार फोर्ट पर जबरदस्त फायरिंग की। यह देखकर अंग्रेजॉ ने भी फोर्ट के सारे दरवाजे बंदकर परकोटे से फायरिंग करना शुरू कर दिया। उस दिन सेनानी फोर्ट का दरवाजा तोड़ने में सफल नहीं हो पाये।
सहृदय रानी नहीं चाहती थी कि युद्ध में अंग्रेजों की महिलाओं और बच्चों का कोई अहित हो, इसीलिये उन्होंने मेजर स्केन के पास अपना संदेश भेजा कि वह उनको महल में भेज दे। जहां वे पूरी तरह सुरक्षित रहेंगीं। उनकी सुरक्षा के लिए ४०-५० सैनिक भी भेजे। परन्तु स्केन ने उनका यह प्रस्ताव भी अस्वीकार कर दिया।
७ जून १८५७
स्वतंत्रता सेनानी पूरी ताकत के साथ स्टार फोर्ट पर फायरिंग कर रहे थे। इसी दौरान मेजर स्केन का खानसामा शाहबुद्दीन स्टार फोर्ट की दीवाल के पास दो दूध की बोतलें और रोटियों के चार बंडल देने के लिए पहुंचा जिसे मेजर स्केन ने रस्सी से खींच लिया। उसकी इस हरकत को सेनानियों ने देख लिया। उन्होंने शाहबुद्दीन को गिरफ्तार कर मामा साहब (मोरो पंत) के सामने पेश कर दिया। शाहबुद्दीन के गिरफ्तार हो जाने के कारण फोर्ट में खाने की सप्लाई बंद हो गयी। कर्मचारी भूखे मरने लगे। कप्तान बर्गीस के दो कर्मचारी जो आपस में भाई थे, ने अंग्रेजों से बाहर जाने की प्रार्थना की, लेकिन अंग्रेजों ने कहा कि बाहर जाने का प्रयास मत करना, वरना गोली मार दी जाएगी ! प्रत्युत्तर में उसने कहा कि भूखो मरने की अपेक्षा गोली खाना अच्छा है। इतना कहते ही अंग्रेजों ने उसे गोली मार दी। अपने भाई को मरते देखकर दूसरे कर्मचारी ने पास खड़े लेफ्टिनेंट पॉयज को तलवार से मार डाला। यह देखकर कैप्टेन बर्गीस आपे से बाहर हो गया उसने तुरन्त उस कर्मचारी को गोली मार दी। इसके अलावा उसने २१ निर्दोषों को भी अपने अचूक निशाने से मार दिया था, लेकिन वह भी उनका पीछा करते समय सिर में गोली लगने से मारा गया।
स्वतन्त्रता सेनानियों के लगातार हमलों से आसपास की बस्तियों में रहने वाले सारे अंग्रेज भागकर दतिया और ललितपुर चले गए थे। केवल स्टार फोर्ट में ही अंग्रेज रह गए थे। स्थिति गंभीर थी। इसीलिये रानी ने एकबार फिर सलाह दी कि वे भागकर राजा के संरक्षण में दतिया चले जाएँ, लेकिन स्केन और उसके असिस्टेंट गॉर्डोन ने रानी की सलाह नहीं मानी।
८ जून १८५७
स्वतन्त्रता सेनानियों को अंग्रेजों से लड़ते लड़ते ४ दिन हो गए थे। आज उन्होंने आर-पार की लड़ाई लड़ने का निर्णय कर लिया और सुबह से ही कड़क बिजली तोप को लेकर स्टार फोर्ट पहुँच गए। उनके साथ झाँसी की जनता के अलावा रानी के १५० सैनिक भी थे।
स्टार फोर्ट में अब मात्र ५५ अंग्रेज बचे थे, जिसमें महिलायें और बच्चे भी शामिल थे। महिलायें और बच्चे बड़ी मेहनत कर रहे थे। उन्होंने रात में ही फोर्ट के दरवाजों में बड़े बड़े पत्थर लगा दिए ताकि सेनानी आसानी से न तोड़ सकें। मोर्चे पर भी महिलायें उनकी खाली बंदूकों में बारूद और गोली भर रहीं थी। गोलियां ख़त्म न हो जाएँ इसीलिये उनका एक दल रांगे की गोलियां ढाल रहा था।
सुबह ८ बजे के लगभग कॅप्टन गॉर्डोन सेनानियों की स्थिति जानने के लिए फोर्ट की दीवाल से झाँका, उसी समय उसके सिर में गोली लगी और वह मारा गया। गॉर्डोन के मरते ही स्केन की हिम्मत टूट गयी मगर फिर भी वह फोर्ट की रक्षा करता रहा। शाम के ३ बजे लड़ाई बंद कर सेनानी वापिस लौट गए। तब स्केन अपने साथियों सहित झांसी छोड़कर भागने का निर्णय कर फोर्ट से नीचे उतारा। उसके साथ लोडेड बंदूकें लिए उसके साथियों के अलावा पहियों वाली एक छोटी तोप भी थी। अंग्रेजों के भागने की खबर सेनानियों को मिल गयी। वे तेजी से वापिस स्टार फोर्ट की तरफ लौट पड़े। अंग्रेजों का काफिला झोकन बाग़ तक पहुँच गया था। उन्होंने सेनानियों को आता देखकर झोकन बाग़ के पीछे मिट्टी की मेंड की आड़ में तोप लगाकर मोर्चा संभाल लिया। दोनों और से भयंकर फायरिंग हुई अंत में सारे अंग्रेज मय बीबी बच्चों के मारे गए। केवल स्केन ही बचा था, उसने गिरफ्तार होने की अपेक्षा मरना अच्छा समझा और अपनी पिस्तौल से सिर में गोली मार कर आत्महत्या करली।
अंग्रेजो की महिलाओं और बच्चों के मारे जाने का सबको दु:ख था। परन्तु अंग्रेज अगर मोर्चे पर महिलाओं और बच्चों को अपने साथ रखते हैं तो जबाबी कार्यवाही में इनके मारे जाने के लिए मूलत: अंग्रेज ही जिम्मेदार थे। ।

कप्तान स्केन की मृत्यु का एक विक्टोरियन चित्र
युद्ध जीतने के बाद सेनानी खुशी से झूमने लगे। जीत का समाचार देने के लिए वे नारे लगाते हुए रानीमहल की ओर रवाना हुए। वहां पहुँच कर उन्होंने रानी से झाँसी का राज्य ग्रहण कर क़िले में चलने का आग्रह किया। जिसे रानी ने स्वीकार कर लिया। इस तरह झांसी स्वतंत्र हो गया।
स्वतन्त्रता आंदोलन की मुख्यधारा से जुड़ने के लिए समस्त स्वतन्त्रता सेनानी ११ जून १८५७ को दिल्ली को रवाना हो गए। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने उनकी विदाई में ३५००० रुपये नगद, दो हाथी और ५ घोड़े भेंट किये।
संदर्भ -
१. महारानी लक्ष्मीबाई द्वारा मेजर एरस्किन को लिखा पत्र दिनांक १४ जून १८५७
२. झाँसी क्लासिक इन्साइकिलोपीडिया
३ . पिंकसे और स्कॉट की ऑफिसियल रिपोर्ट दिनांक १२ नवंबर १८५७ जिसमें मिसेज मुटलो, मेजर स्केन का खानसामा शाहबुद्दीन तथा ३ अन्य स्थानीय लोगों के कथन
४. मेजर एलिस द्वारा गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया को भेजा टेलीग्राम
५. मृत्यु की सजा पाये हुए १२ वीं नेटिव इन्फेंट्री का जवान अमन खान का कथन
६. अंग्रेज चित्रकार द्वारा १८५८ में मौके पर बनाया गया स्केन की मृत्यु का चित्र।

सन १८५७ में झाँसी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज्य था। मेजर एलेक्जेंडर स्केन अधीक्षक, कॅप्टन गोर्डन उप अधीक्षक, डनलप सेना का कमांडर था। इसके अलावा कस्टम, साल्ट आदि विभागों के अलग अलग अंग्रेज अफसर थे। वे झाँसी के निवासियों के साथ जानवरों की तरह व्यवहार करते थे। उनके अत्याचारों से जनता त्रस्त थी।
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को अंग्रेजो की गुलामी कतई स्वीकार नहीं थी, किन्तु वे विवश थीं। उनके पास सेना के नामपर मात्र १०० रक्षक थे, जिनके सहारे अंग्रेजों को झाँसी से बाहर नहीं निकाला जा सकता था। उन्हें अपने इस उद्देश्य की पूर्ती के लिए उन्हें एक सशक्त सेना की आवश्यकता थी। जिसे अंग्रेजी सेना के भारतीय सिपाही ही पूरा कर सकते थे। रानी ने क़िले में तैनात अंग्रेजों की १८वी इन्फेंट्री की ७वी कंपनी और शहर की पुलिस को अपने पक्ष में मिलाने के लिए अपने विश्वसनीय कर्मचारी लक्ष्मण राव को नियुक्त किया। लक्ष्मण राव ने इन्फैंट्री के हवलदार गुरुबख्श की मदद से इन्फैंट्री तथा पुलिस को अपने पक्ष में कर लिया।
लक्ष्मण राव के बार-बार क़िले में जाने के कारण अंग्रेजों को संदेह हो गया। मेरठ, देहली आदि स्थानों पर घटित विद्रोह की घटनाओं के कारण उन्हें यह डर लगाने लगा कि कहीं झाँसी में उनकी सेना विद्रोह न कर बैठे? इसीलिये उन्होंने सुरक्षा की दृष्टि से अपनी दिनचर्या बदल ली। अब वह दिन अपने बंगलों में तथा रात परिवार सहित स्टार फोर्ट में व्यतीत करते थे, जहां सुरक्षा की पूरी व्यवस्था थी। फोर्ट के बाहर कप्तान बर्गीस ने अपने सैनिकों के साथ पहरा देने के लिए तम्बू लगा लिए थे ।
४ जून १८५७
शाम के ३-४ बजे, झाँसी के क़िले से हबलदार गुरुबख्श के नेतृत्व में १८वी इन्फेंट्री की टुकड़ी मार्च करती हुई स्टार फोर्ट की ओर रवाना हुई। लोगों ने इसे सेना का सामान्य प्रचलन समझा, इसीलिये किसी ने इस पर गौर नहीं किया। लेकिन स्टार फोर्ट पहुँचाने पर उस टुकड़ी ने बर्गीस के सैनिकों पर आक्रमण कर दिया। इस अचानक आक्रमण से घबड़ाकर वह अपने साथियों के साथ स्टार फोर्ट में भाग गया, लेकिन लेफ्टिनेन्ट टर्नबुल भाग नहीं पाया, वह जान बचाने के लिए पास के एक पेड़ पर चढ़ गया। उसे पेड़ पर चढ़ते हुए सेनानियों ने देख लिया और गोली मार दी। एक दूसरा अंग्रेज अफसर घोड़े पर सवार होकर बरुआसागर भाग गया।वहां उसने सर्वेयर साहिब राय को अपना घोड़ा और घड़ी देकर बदले में हिन्दुस्तानी कपड़े मंगवाये और भेष बदलकर पैदल भाग गया। बाद में पीछा करते हुए सेनानी वहां पहुंचे, उन्होंने घोड़ा देखकर साहिब राय से पूँछ-तांछ की। पूँछ तांछ में पता चला कि साहिब राय के साथ वहां के दरोगा ने भी उस अंग्रेज को भगाने में मदद की थी, इसीलिये वे इन दोनों को गिरफ्तार कर झाँसी ले आये और उन्हें मामा साहब (रानी के पिता मोरोपंत ) के सामने पेश किया। बाद में सारे सेनानी रानीमहल पहुंचे, वहां उन्होंने रानी से मार्गदर्शन लेकर अगला कार्यक्रम निर्धारित किया और फिर विश्राम के लिए वापिस क़िले में चले गये ।
५ जून १८५७
स्टार फोर्ट की घटना के कारण सुबह केप्टन डनलप ने शेष १२वी इन्फेंट्री और घुड़सवार सेना की परेड ली और सबसे वफादारी के संबंध में पूंछा, तो सैनिकों ने कहा की वे सब उनके साथ हैं। लेकिन डनलप के जाने के बाद १२ वीं इन्फेंट्री और घुड़सवार सेना के जवान गुरुबख्श के समझाने पर स्वतन्त्रता सेनानियों के साथ हो गऐ । इसके अलावा जेल का दरोगा बख्शीस अली ने जेल के सारे कैदियों को आजाद कर दिया और उनको लेकर वह अपने स्टाफ के सिपाहियों के साथ सेनानियों की कतार में खड़ा हो गया।
दुपहर १ बजे ५०-६० सेनानियों ने मैगजीन और खजाने पर आक्रमण कर उसे अपने कब्जे में ले लिया। अब शक्ति संतुलन पूरी तरह स्वतन्त्रता सेनानियों के पक्ष में हो गया था। उनके साथ अंग्रेजों की अधिकाँश सेना, पुलिस, कस्टम,जेल व जेल के कैदियों के अलावा झाँसी की पूरी जनता और आस-पास के बंदूकधारी शामिल हो गए थे। ऐसी स्थिति में रानी चाहतीं थी कि अंग्रेज बिना किसी खून-खराबे के यहां से चले जाएँ। यह प्रस्ताव उन्होंने मेजर स्केन के पास भिजवाया, परन्तु उसने रानी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर कहा कि रानी उसे डरा रहीं हैं। लेकिन उसने सुरक्षा की दृष्टि से महिलाओं और बच्चों को स्टार फोर्ट में भिजवा दिया।
६ जून १८५७
कल की घटना को देखकर सेना के कमांडर कैपटन डनलप ने नाके-बंदी कर गार्ड तैनात कर दिए। सुबह से स्थति कल की तरह यथावत रही , परन्तु दुपहर के १२ बजे बाद सारे स्वतन्त्रता सेनानी एकत्र हो गए। उस समय डनलप अपने कुछ अंग्रेज अफसरों के साथ पत्र पोस्ट करने के लिए डाकखाने जा रहा था। पत्र पोस्ट करने के बाद वह अपने बंगले की ओर रवाना हुआ कि सेनानियों ने उसपर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में वह और उसका साथी इन्सिग्न टेलर मारा गया और एक दूसरा अफसर कॉम्बेल घायल होकर भाग गया। सेनानियों ने अंग्रेजों के बंगलों तथा आफिसों को जला कर राख कर दिया। इसके बाद उन्होंने स्टार फोर्ट पर जबरदस्त फायरिंग की। यह देखकर अंग्रेजॉ ने भी फोर्ट के सारे दरवाजे बंदकर परकोटे से फायरिंग करना शुरू कर दिया। उस दिन सेनानी फोर्ट का दरवाजा तोड़ने में सफल नहीं हो पाये।
सहृदय रानी नहीं चाहती थी कि युद्ध में अंग्रेजों की महिलाओं और बच्चों का कोई अहित हो, इसीलिये उन्होंने मेजर स्केन के पास अपना संदेश भेजा कि वह उनको महल में भेज दे। जहां वे पूरी तरह सुरक्षित रहेंगीं। उनकी सुरक्षा के लिए ४०-५० सैनिक भी भेजे। परन्तु स्केन ने उनका यह प्रस्ताव भी अस्वीकार कर दिया।
७ जून १८५७
स्वतंत्रता सेनानी पूरी ताकत के साथ स्टार फोर्ट पर फायरिंग कर रहे थे। इसी दौरान मेजर स्केन का खानसामा शाहबुद्दीन स्टार फोर्ट की दीवाल के पास दो दूध की बोतलें और रोटियों के चार बंडल देने के लिए पहुंचा जिसे मेजर स्केन ने रस्सी से खींच लिया। उसकी इस हरकत को सेनानियों ने देख लिया। उन्होंने शाहबुद्दीन को गिरफ्तार कर मामा साहब (मोरो पंत) के सामने पेश कर दिया। शाहबुद्दीन के गिरफ्तार हो जाने के कारण फोर्ट में खाने की सप्लाई बंद हो गयी। कर्मचारी भूखे मरने लगे। कप्तान बर्गीस के दो कर्मचारी जो आपस में भाई थे, ने अंग्रेजों से बाहर जाने की प्रार्थना की, लेकिन अंग्रेजों ने कहा कि बाहर जाने का प्रयास मत करना, वरना गोली मार दी जाएगी ! प्रत्युत्तर में उसने कहा कि भूखो मरने की अपेक्षा गोली खाना अच्छा है। इतना कहते ही अंग्रेजों ने उसे गोली मार दी। अपने भाई को मरते देखकर दूसरे कर्मचारी ने पास खड़े लेफ्टिनेंट पॉयज को तलवार से मार डाला। यह देखकर कैप्टेन बर्गीस आपे से बाहर हो गया उसने तुरन्त उस कर्मचारी को गोली मार दी। इसके अलावा उसने २१ निर्दोषों को भी अपने अचूक निशाने से मार दिया था, लेकिन वह भी उनका पीछा करते समय सिर में गोली लगने से मारा गया।
स्वतन्त्रता सेनानियों के लगातार हमलों से आसपास की बस्तियों में रहने वाले सारे अंग्रेज भागकर दतिया और ललितपुर चले गए थे। केवल स्टार फोर्ट में ही अंग्रेज रह गए थे। स्थिति गंभीर थी। इसीलिये रानी ने एकबार फिर सलाह दी कि वे भागकर राजा के संरक्षण में दतिया चले जाएँ, लेकिन स्केन और उसके असिस्टेंट गॉर्डोन ने रानी की सलाह नहीं मानी।
८ जून १८५७
स्वतन्त्रता सेनानियों को अंग्रेजों से लड़ते लड़ते ४ दिन हो गए थे। आज उन्होंने आर-पार की लड़ाई लड़ने का निर्णय कर लिया और सुबह से ही कड़क बिजली तोप को लेकर स्टार फोर्ट पहुँच गए। उनके साथ झाँसी की जनता के अलावा रानी के १५० सैनिक भी थे।
स्टार फोर्ट में अब मात्र ५५ अंग्रेज बचे थे, जिसमें महिलायें और बच्चे भी शामिल थे। महिलायें और बच्चे बड़ी मेहनत कर रहे थे। उन्होंने रात में ही फोर्ट के दरवाजों में बड़े बड़े पत्थर लगा दिए ताकि सेनानी आसानी से न तोड़ सकें। मोर्चे पर भी महिलायें उनकी खाली बंदूकों में बारूद और गोली भर रहीं थी। गोलियां ख़त्म न हो जाएँ इसीलिये उनका एक दल रांगे की गोलियां ढाल रहा था।
सुबह ८ बजे के लगभग कॅप्टन गॉर्डोन सेनानियों की स्थिति जानने के लिए फोर्ट की दीवाल से झाँका, उसी समय उसके सिर में गोली लगी और वह मारा गया। गॉर्डोन के मरते ही स्केन की हिम्मत टूट गयी मगर फिर भी वह फोर्ट की रक्षा करता रहा। शाम के ३ बजे लड़ाई बंद कर सेनानी वापिस लौट गए। तब स्केन अपने साथियों सहित झांसी छोड़कर भागने का निर्णय कर फोर्ट से नीचे उतारा। उसके साथ लोडेड बंदूकें लिए उसके साथियों के अलावा पहियों वाली एक छोटी तोप भी थी। अंग्रेजों के भागने की खबर सेनानियों को मिल गयी। वे तेजी से वापिस स्टार फोर्ट की तरफ लौट पड़े। अंग्रेजों का काफिला झोकन बाग़ तक पहुँच गया था। उन्होंने सेनानियों को आता देखकर झोकन बाग़ के पीछे मिट्टी की मेंड की आड़ में तोप लगाकर मोर्चा संभाल लिया। दोनों और से भयंकर फायरिंग हुई अंत में सारे अंग्रेज मय बीबी बच्चों के मारे गए। केवल स्केन ही बचा था, उसने गिरफ्तार होने की अपेक्षा मरना अच्छा समझा और अपनी पिस्तौल से सिर में गोली मार कर आत्महत्या करली।
अंग्रेजो की महिलाओं और बच्चों के मारे जाने का सबको दु:ख था। परन्तु अंग्रेज अगर मोर्चे पर महिलाओं और बच्चों को अपने साथ रखते हैं तो जबाबी कार्यवाही में इनके मारे जाने के लिए मूलत: अंग्रेज ही जिम्मेदार थे। ।

कप्तान स्केन की मृत्यु का एक विक्टोरियन चित्र
युद्ध जीतने के बाद सेनानी खुशी से झूमने लगे। जीत का समाचार देने के लिए वे नारे लगाते हुए रानीमहल की ओर रवाना हुए। वहां पहुँच कर उन्होंने रानी से झाँसी का राज्य ग्रहण कर क़िले में चलने का आग्रह किया। जिसे रानी ने स्वीकार कर लिया। इस तरह झांसी स्वतंत्र हो गया।
स्वतन्त्रता आंदोलन की मुख्यधारा से जुड़ने के लिए समस्त स्वतन्त्रता सेनानी ११ जून १८५७ को दिल्ली को रवाना हो गए। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने उनकी विदाई में ३५००० रुपये नगद, दो हाथी और ५ घोड़े भेंट किये।
संदर्भ -
१. महारानी लक्ष्मीबाई द्वारा मेजर एरस्किन को लिखा पत्र दिनांक १४ जून १८५७
२. झाँसी क्लासिक इन्साइकिलोपीडिया
३ . पिंकसे और स्कॉट की ऑफिसियल रिपोर्ट दिनांक १२ नवंबर १८५७ जिसमें मिसेज मुटलो, मेजर स्केन का खानसामा शाहबुद्दीन तथा ३ अन्य स्थानीय लोगों के कथन
४. मेजर एलिस द्वारा गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया को भेजा टेलीग्राम
५. मृत्यु की सजा पाये हुए १२ वीं नेटिव इन्फेंट्री का जवान अमन खान का कथन
६. अंग्रेज चित्रकार द्वारा १८५८ में मौके पर बनाया गया स्केन की मृत्यु का चित्र।